सार
BJP Party President : भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा बिहार से पढ़-बढ़ कर निकले थे। अब एक युवा भाजपाई को चौंकाते हुए भाजपा ने राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है। क्यों आखिर चुनाव गया नितिन नवीन को? क्या आगे वह नड्डा की कुर्सी संभालेंगे?

भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष घोषित किए गए पटना के बांकीपुर विधायक व मंत्री नितिन नवीन। – फोटो : अमर उजाला डिजिटलविज्ञापन
विस्तार
भारतीय जनता पार्टी हमेशा चौंकाने वाला फैसला लेती है। वर्ष 2014 के बाद के बाद की भाजपा में तो यह एक ट्रेंड है। रविवार को फिर एक चौंकाने वाला फैसला आया। चौंकाना वाला दो लिहाज से- 1. बिहार विधानसभा चुनाव हो चुका है, फिर भी बिहार से किसी विधायक-मंत्री को भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष की कुर्सी! 2 बिहार की जातिगत जनगणना में हिंदुओं की संख्या 81.99 प्रतिशत निकली थी और कुल आबादी में महज 0.6 प्रतिशत आबादी कायस्थों की बताई गई थी, फिर इस जाति से भाजपा का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष! दोनों ही कारण बड़े हैं, इसलिए भाजपा ने पूरे देश को चौंकाया। लेकिन, अगर नितिन नवीन के नाम और काम का परिचय देखें तो यह चौंकाने वाला फैसला नहीं होगा। हां, अगर जेपी नड्डा की तरह उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया तो वह असल में चौंकाने वाला मामला होगा। भाजपा की नीति से यह संभव है या नहीं, यह भी आगे जानेंगे। शुरुआत नितिन नवीन के उदय से।
नितिन नवीन का राजनीति उदय बहुत कष्ट में हुआ
2005 में बिहार में दो बार विधानसभा चुनाव हुए थे। अक्टूबर 2005 के इस चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की मजबूत सरकार बनी थी। सितंबर 2005 में पटना के एक मंच पर खड़े होकर लाल कृष्ण आडवाणी, प्रमोद महाजन, सुषमा स्वराज जैसे दिग्गजों ने एलान किया था कि जो सबसे ज्यादा मतों से बिहार विधानसभा चुनाव जीतेगा, उसे उप मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार होंगे, यह पहले ही साफ था। तब, जितने वोट बाकी कुछ विधायक हासिल कर सके थे- उससे भी ज्यादा 86119 मतों के अंतर से नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा ने तत्कालीन पटना पश्चिम विधानसभा सीट जीती थी। दुर्भाग्य! उस कुर्सी पर उनके नाम की घोषणा से पहले दिल्ली से बुरी खबर आई कि उनका वहां निधन हो गया। वह एक बुरा अध्याय था, जिससे नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा का छोटा-सा परिवार अचानक बिखर गया था। तब नितिन राजनीतिक रूप से उतने सक्रिय नहीं थे। घाव भरने के लिए भाजपा ने उनकी पत्नी को उप-चुनाव में उतरने कहा, लेकिन उन्होंने बेटे को पिता की जिम्मेदारी संभालने के लिए आगे किया। इसी कष्ट से बिहार की राजनीति में नितिन नवीन का उदय हुआ।
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पटना शहर से शुरुआत, भाजयुमो से दिखाई ताकत
भाजपा संगठन में मजबूत पकड़ देखती है और नितिन नवीन में उसे संभावना दिखी। हां, समय जरूर लगा। विधायक के रूप में नितिन नवीन पटना पश्चिमी क्षेत्र (अब, बांकीपुर विधानसभा) की पहचान बने। उप चुनाव में जीते और फिर हमेशा बड़े अंतर से जीतते ही रहे। केंद्र में भी जब भाजपा की सरकार बन गई तो नितिन नवीन का राजनीतिक रूप बढ़ा। विजन की स्पष्टता और कार्यकर्ताओं के बीच पकड़ को समझते हुए भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई। भाजयुमो अध्यक्ष के रूप में कार्यकर्ताओं का नेटवर्क खड़ा करना नितिन नवीन के लिए फायदेमंद साबित हुआ। राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में पहचान बनी तो दूसरे राज्य की तरफ भी भाजपा ने उन्हें भेजा। सिक्कम-छत्तीसगढ़ में नितिन नवीन ने संगठन के लिए जो काम किया और जैसी सक्रियता दिखाई, उसे स्वीकारने का प्रमाण है यह ताजा फैसला। छत्तीसगढ़ प्रभारी के रूप में वह भाजपा के लिए पुनर्वापसी का मंत्र साबित हुए।
कायस्थ या बिहारी होने के कारण नहीं मिली यह कुर्सी; तो फिर?
महज 0.6 प्रतिशत आबादी जिस जाति की बिहार जैसे राज्य में हो, उसके किसी युवा विधायक या मंत्री के लिए भारतीय जनता पार्टी में इतनी बड़ी जिम्मेदारी मिलना किसी भी लिहाज से संभव नहीं। वह भी तब, जबकि इसी आधार पर भाजपा ने 243 में से 101 सीटों पर प्रत्याशी देकर भी इकलौते नितिन नवीन को ही कायस्थ जाति से टिकट दिया था। और, बिहार चुनाव में प्रचंड जीत के बाद इस राज्य से किसी को आगे बढ़ाने की बात भी सुपाच्य नहीं। तो, फिर क्यों बनाया गया नितिन नवीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष? इस सवाल का जवाब भाजपा में हर कोई उनकी सांगठनिक कुशलता को ही देता है। भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री ऋतुराज सिन्हा कहते हैं- “भाजपा कार्यकर्ताओं की पार्टी है और यह संगठन के अंदर बेहतर काम करने वालों को इसी तरह सामने लाती है। लोग चौंकते जरूर हैं, लेकिन संगठन में काम करने वालों को ऐसी आशा हमेशा रहती है कि उनकी पार्टी अचानक कभी भी उन्हें आगे बढ़ा सकती है, अप्रत्याशित!”
राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचने की संभावना कितनी है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा को देखें तो यह संभावना 100 प्रतिशत है। मतलब, अगर नितिन नवीन को आगे चलकर कार्यकारी की जगह राष्ट्रीय अध्यक्ष ही घोषित कर दिया जाए- ऐसा संभव है। चाणक्य स्कूल ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं- “जेपी नड्डा भी पहले कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए थे। बिहार में पले-बढ़े व्यक्ति और पहाड़ी का उस समय इस तरह उभरना चौंकाने वाला ही था। लेकिन, मोदी-शाह की भाजपा तो चौंकाने वाले फैसलों के लिए ही जानी जाती है। नितिन नवीन कायस्थ या बिहारी पहचान नहीं, बल्कि सांगठनिक कौशल के कारण कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचे हैं और जिस तरह से नाम उभरा है, विकल्प तलाशने की जरूरत शायद भाजपा नहीं समझे।” [अमर उजाला से साभार]
